मानसिकता का नियम (The Law of Mentalism)
मानसिकता का नियम यह कहता है कि पूरा ब्रह्मांड एक विशाल मानसिक निर्माण है, यानी सब कुछ जो हम देखते या अनुभव करते हैं, वह चेतना या मन की उपज है। इसका मतलब यह है कि हमारी सोच, धारणाएँ, और मान्यताएँ हमारे अनुभव और हमारी वास्तविकता को आकार देती हैं।
इस नियम के अनुसार, हमारा मन ब्रह्मांड के सृजनात्मक स्रोत से जुड़ा हुआ है। इसका अर्थ है कि हमारे विचार और भावनाएं न केवल हमारी निजी दुनिया को प्रभावित करते हैं, बल्कि वे आस-पास के पर्यावरण और घटनाओं को भी प्रभावित कर सकते हैं।
इस नियम को समझने के लिए यह मानना जरूरी है कि हमारी सोच और धारणाएं हमारी जिंदगी को आकार देती हैं और इसलिए, हमें अपनी सोच को सकारात्मक और निर्माणात्मक बनाए रखना चाहिए। यह नियम हमें यह भी सिखाता है कि हमारे विचारों और भावनाओं के प्रति जागरूक रहकर हम अपने जीवन को और अधिक नियंत्रित और सुखमय बना सकते हैं।
समरूपता का नियम (The Law of Correspondence)
समरूपता का नियम कहता है, "जैसा ऊपर, वैसा नीचे; जैसा अंदर, वैसा बाहर।" इसका तात्पर्य यह है कि हमारे आंतरिक विचार और भावनाएं हमारे बाहरी जीवन में सीधा प्रभाव डालती हैं। यानी, हमारी आंतरिक स्थिति हमारे बाहरी अनुभवों का आईना होती है।
उदाहरण के लिए, अगर आपके मन में नकारात्मक विचार और चिंताएं हैं, तो आप अपने आसपास भी नकारात्मकता और समस्याएं महसूस करेंगे। इसी तरह, अगर आपके मन में सकारात्मकता है, तो आपको अपने जीवन में भी सकारात्मक परिणाम और अवसर दिखाई देंगे।
इस नियम को समझना और इसके अनुसार काम करना हमें यह सिखाता है कि हमारे बाहरी जीवन को बदलने के लिए हमें पहले अपने आंतरिक विचारों और भावनाओं पर काम करना होगा। जब हम अपने अंदर की दुनिया को संवारते हैं, तो हमारी बाहरी दुनिया भी उसी अनुसार खुद-ब-खुद संवरने लगती है।
कंपन का नियम (The Law of Vibration)
कंपन का नियम यह कहता है कि सब कुछ इस ब्रह्मांड में, चाहे वह दृश्यमान हो या अदृश्य, एक निश्चित कंपन या आवृत्ति पर होता है। यानी, हर चीज़, हर वस्तु, हर विचार, यहां तक कि हर भावना भी एक विशेष तरंग दैर्ध्य पर कंपित होती है।
इस नियम के अनुसार, जब हम किसी विशेष तरंग दैर्ध्य या कंपन पर होते हैं, तो हम उसी तरह की कंपन वाली चीजों, लोगों, और अनुभवों को आकर्षित करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आपके विचार सकारात्मक हैं और आप खुशी की कंपन पर हैं, तो आप सकारात्मक परिस्थितियों और लोगों को आकर्षित करेंगे।
यह नियम हमें यह सिखाता है कि हमारे विचार, भावनाएं, और मान्यताएं हमारे कंपन को निर्धारित करती हैं, और यही हमारी जिंदगी की गुणवत्ता और अनुभवों को तय करता है। इसलिए, यदि हम बेहतर और सुखमय जीवन चाहते हैं, तो हमें अपने विचारों और भावनाओं को संभालना और उन्हें सकारात्मक दिशा में ले जाना चाहिए।
परिवर्तन का नियम (The Law of Polarity)
परिवर्तन का नियम यह कहता है कि हर चीज़ में दो विपरीत पहलू होते हैं, जैसे गर्म और ठंडा, उजाला और अंधेरा, सकारात्मक और नकारात्मक। लेकिन ये विपरीतताएँ वास्तव में एक ही चीज़ के दो सिरे होते हैं, बिल्कुल जैसे एक सिक्के के दो पहलू होते हैं।
इस नियम का मतलब यह है कि हम जिन चीज़ों को विपरीत समझते हैं, वे वास्तव में एक ही चीज़ के अलग-अलग रूप होते हैं। उदाहरण के लिए, खुशी और दुःख वास्तव में भावनाओं की एक ही श्रृंखला के दो छोर हैं।
यह नियम हमें यह भी सिखाता है कि जब हम किसी एक छोर पर होते हैं, तो हमें उसके विपरीत पहलू का भी अनुभव होता है। जैसे, अगर हम बहुत खुश हैं, तो हमें कभी-कभी दुख भी महसूस होता है। इसका मतलब यह है कि जीवन में संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है और हर चीज़ को उसके पूर्ण रूप में स्वीकार करना चाहिए।
तो इस नियम से हमें यह सिखने को मिलता है कि हर परिस्थिति या भावना के दो पहलू होते हैं, और हमें दोनों को समझकर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।
लय का नियम (The Law of Rhythm)
लय का नियम यह बताता है कि हमारे जीवन में सब कुछ एक निश्चित लय में चलता है। जैसे समुद्र की लहरें आती-जाती हैं, दिन रात में बदलता है, वैसे ही हमारे जीवन में भी अच्छे और बुरे समय आते-जाते रहते हैं।
इसका मतलब यह है कि हमें हर चीज़ के अस्थायी होने का समझ होना चाहिए। जब हम खुश होते हैं, तो हमें यह पता होना चाहिए कि यह समय भी बदलेगा, और जब हम दुखी होते हैं, तो भी यही बात समझनी चाहिए कि यह समय भी बीत जाएगा।
यह नियम हमें जीवन की लय के साथ तालमेल बिठाना सिखाता है। इससे हमें यह सीखने को मिलता है कि हमें हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखना चाहिए और न तो बहुत अधिक खुशी में बहकना चाहिए और न ही दुःख में बहुत अधिक निराश होना चाहिए।
इस तरह, लय का नियम हमें जीवन की उतार-चढ़ाव को स्वीकार करने और उसके अनुरूप खुद को ढालने की कला सिखाता है।
कारण और प्रभाव का नियम (The Law of Cause and Effect)
कारण और प्रभाव का नियम बहुत ही सीधा-सा है। यह कहता है कि हर कार्य का कोई न कोई प्रभाव होता है। यानी जो भी हम करते हैं, उसका कुछ नतीजा ज़रूर होता है। इसे हम रोज़मर्रा की भाषा में 'जैसी करनी, वैसी भरनी' के रूप में भी जानते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर आप किसी की मदद करते हैं, तो बदले में आपको भी कभी न कभी मदद मिलती है। इसी तरह, अगर आप किसी को दुख पहुंचाते हैं, तो आपको भी किसी रूप में दुख का अनुभव हो सकता है।
यह नियम हमें सिखाता है कि हमें अपने हर कार्य के प्रभाव के बारे में सोच-समझकर काम करना चाहिए। हम जो भी करते हैं, उसका प्रभाव हमारे जीवन पर और दूसरों के जीवन पर पड़ता है।
इसलिए, हमें हमेशा अच्छे कार्य करने चाहिए और दूसरों के प्रति करुणा और समझदारी से पेश आना चाहिए, ताकि हमारे जीवन में भी अच्छे प्रभाव आएं।
लिंग का नियम (The Law of Gender)
लिंग का नियम यह कहता है कि हर चीज में नर और मादा के तत्व होते हैं। यह सिर्फ शारीरिक लिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांड के हर पहलू में मौजूद है। इसका मतलब यह है कि सृजन और विकास के लिए दोनों तत्वों का संतुलन ज़रूरी है।
नर तत्व को हम सक्रियता, दृढ़ता और तार्किकता से जोड़ सकते हैं, जबकि मादा तत्व को नरमी, सहनशीलता और भावनाओं से। यह नियम हमें बताता है कि हर चीज में ये दोनों तत्व होने चाहिए, ताकि वह पूर्ण और संतुलित बन सके।
जैसे, अगर हम किसी काम में सिर्फ तार्किकता (नर तत्व) का इस्तेमाल करें और भावनाओं (मादा तत्व) को नज़रअंदाज करें, तो हम उस काम में पूरी तरह सफल नहीं हो सकते। इसी तरह, अगर हम केवल भावनाओं पर ही ध्यान दें और तार्किकता को अनदेखा करें, तो भी हमें पूर्णता नहीं मिल सकती।
तो, लिंग का नियम हमें यह सिखाता है कि हमें अपने अंदर और अपने आसपास दोनों तत्वों का संतुलन बनाए रखना चाहिए, ताकि हम संतुलित और सार्थक जीवन जी सकें।
निष्कर्ष
ये सात ब्रह्मांडीय नियम - मानसिकता, समरूपता, कंपन, परिवर्तन, लय, कारण और प्रभाव, तथा लिंग - हमारे जीवन और ब्रह्मांड के कामकाज को समझने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। ये नियम हमें यह सिखाते हैं कि हमारे विचार, कर्म और ऊर्जा किस प्रकार हमारी वास्तविकता को आकार देते हैं और कैसे हम अपने जीवन को संतुलित और समृद्ध बना सकते हैं।
इन नियमों का जीवन में उपयोग करके हम अपनी चेतना को विकसित कर सकते हैं और एक संतुलित, खुशहाल तथा सार्थक जीवन जी सकते हैं।
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